दीपोत्सव
(कविता)इन दुख की काली रातों में,दीपों से धरा सजाना है।
कोई कोना छूटे ना,इस तम को जंग से मिटाना है।
तन को मन को आलोकित कर,जग आलोकित कर जाना है।
जो अंधेरों में मन मारे बैठे हैं,इक आस दीप जलाना है।।१।।इन दुःख।।
जीवन की अंधेरी राहों में, कांटों के उपर चलनां है।
उम्मीदों का जला के एक दिया,हर खतरे से बच के निकलना है ।
ना ठोकर खाये कोई राह में ,दीपक बाती सा जलना है।
कर्मों के पथ आलोकित हो,हर दिल में उजाला करना है।।२।।इन दुख की।।
नीले अंबर की छांव में, दुख से कातर हर गांव में।
बांधे घुंघरू पांवों में छम छम नाच दिखाना है ।
ना दुखिया हो जीवन में कोई, खुशियों के गीत सुनाना है।
हर तरफ खुशी के रेले हो, हर दिल का साज बजाना है।। ३।।इन दुख की।।
बांधे घुंघरू पांवों में छम छम नाच दिखाना है ।
ना दुखिया हो जीवन में कोई, खुशियों के गीत सुनाना है।
हर तरफ खुशी के रेले हो, हर दिल का साज बजाना है।। ३।।इन दुख की।।
खेतों में खलिहानों में, झोपड़ियों महलों के कंगूरों पे।
हर मंदिरों के कलशोंपे,हर मस्जिद की मीनारों पे।
हर तरफ रोशनी फैली हो, दीपों से टिम टिम लड़ियों के।
कहीं अंधेरे रह ना पायें चर्चों और गुरूद्वारों में।।४।। ।।। इन दुःख।।।
हर मंदिरों के कलशोंपे,हर मस्जिद की मीनारों पे।
हर तरफ रोशनी फैली हो, दीपों से टिम टिम लड़ियों के।
कहीं अंधेरे रह ना पायें चर्चों और गुरूद्वारों में।।४।। ।।। इन दुःख।।।
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