हाय रे मोटापा !
(हास्य दोहे)
मोटापे से हो रही , भारी भरकम देह।
विरला ही कोई मुझे, अब करता है स्नेह।।१।।
लापरवाही थी करी, खूब किया नित भोज।
पर गरिष्ठ आहार की ,आँखें करती खोज।।२।।
चर्बी घटती ही नहीं, बनी हुई हूँ ढोल ।
सुंदर तन इतिहास का, बदल गया भूगोल।।३।।
दर्पण में देखूं अगर , उठती मन में पीर।
कुछ ही दिन में हाय रे! हथिनी बना शरीर।।४।।
लेकिन यदि कोई कहे, मोटी मुझको आज।
जीभ काटकर फेंक दूँ , यह मेरा अंदाज़।।५।।
-०-
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