हम ही ठहर गए
(नज्म)वक्त चलता गया हम ही ठहर गए
लौट आए मुसाफिर जो शहर गए
रहे ना हिदायतो मे जो खुद कभी
लापरवाही से अपनी खुद मर गए
हम मुस्कुराते रहे जिस छुअन से
बदले वक़्त में छुअन से डर गए
खुद से खुद का सामना डर कैसा
उम्रभर के साथी जाने किधर गए
सबक जिंदगी हमें सीखा गई ऐसा
के अब ना इधर रहे , ना उधर गए
वक्त , बेबसी ने सारे खिताब छीने
कातिल से दिखे जिधर जिधर गए
वक्ते वबा से सब रंगीन हुए इंसान
बैरंग हो के हम जो अपने घर गए
ख्वाहिशों के पुलिंदे जो दफन होंगे
तन्हाई के चंद लम्हों से जो डर गए
जो फासला था उसके मेरे दरमियां
मिट जाएगा वह मिलने अगर गए
ऐसो- इशरत छोड़ तन्हा चला गया
इंतजाम जितने किए सब धर गए
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