लौट आईं
आग लगीं -
ये गर्मियां फिर से ।
पंख
गर्म हवाओं के -
निकल आए ।
सूरज ने
लू के अलाव -
जलाए ।
आंखों में
धूल झोंक रहीं -
ये आंधियां फिर से ।
पानीदार नदियों के
अब -
कंठ सुखाने ।
मिट गए
पानी के -
वंश और घराने ।
धरती कराह रही
फटीं -
ये बिवाइयां फिर से ।
दिखें न अब
कहीं -
छांव की गौरैया ।
बे- लगाम हुआ
अब -
मौसम का कन्हैया ।
छुट्टियों की
दाख़िल हुईं -
ये अर्ज़ियां फिर से ।
आग लगीं -
ये गर्मियां फिर से ।
पंख
गर्म हवाओं के -
निकल आए ।
सूरज ने
लू के अलाव -
जलाए ।
आंखों में
धूल झोंक रहीं -
ये आंधियां फिर से ।
पानीदार नदियों के
अब -
कंठ सुखाने ।
मिट गए
पानी के -
वंश और घराने ।
धरती कराह रही
फटीं -
ये बिवाइयां फिर से ।
दिखें न अब
कहीं -
छांव की गौरैया ।
बे- लगाम हुआ
अब -
मौसम का कन्हैया ।
छुट्टियों की
दाख़िल हुईं -
ये अर्ज़ियां फिर से ।
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