मजदूर के दरद
मजदूर के दरद को भी सुनलो,
हम किसे अपनी पीड़ा बताएं।
मर रहे भूखे बच्चे हमारे,
खाना लाकर कहा से खिलाएँ।
मजदूर के दर्द को भी सुनलो..
मर रहे भूख से खाना बिन
हर तरफ़ बेबसी और लाचारी।
चल रहे मीलों पैदल हम रोज,
क्या बताएं क्या हालत हमारी।।
पड़ गए पैरों में इतने छाले,
बोलो मरहम कहाँ से हम लाएं।
नासूर जख़्म अब बन गए हैं,
इनमें मरहम हम कैसे लगाएं।।
मजदूर के दर्द को भी सुनलो…
दो वकत की हम रोटी के ख़ातिर,
दर बदर हैं भटकते शहर में।
घर भेज दो हमें कोई अपने,
आएंगे न कभी अब शहर में।।
बढ़ गए दर्द अब हद से ज्यादा,
अपने आँसू किसे हम दिखाएँ।
हर घड़ी मौत का है अब शाया,
एक एक पल हम मर मर बिताएं।।
मजदूर के दर्द को भी सुनलो...
-०-
बहुत सुंदर लेखन
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