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Monday, 19 October 2020

रिश्तो की डोर (कविता)- बलजीत सिंह

 

रिश्तों की डोर की 
                (कविता)
         सादगी -शराफत रह गई पीछे ,
         धन-दौलत पर भटके ध्यान ।
         रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली  ,
         इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान । ।

         मनचले लोगों के सुनो विचार --
         लड़की हो चाहे उम्र में बड़ी,
         सगाई से पहले
         हमारे द्वार पर
         हो जानी चाहिए गाड़ी खड़ी ।
         घरवाले मजे से घूमेंगे
         होगी मोहल्ले में ऊंची शान  । ।
         रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली  ,
         इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान । ।

         लालची लोग भी करे पुकार --
         हमें रंग-रूप से एतराज नहीं,
         शर्त यही है   
         लेन-देन के मामले में   
         गड़बड़ ना हो जाये कहीं ।
         अड़ोसी-पड़ोसी बार-बार देखें,
         मजबूत और टिकाऊ सामान । ।
         रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली  ,
         इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान । ।

         साधारण लोग तो सोचे यही --
         दो तरह की लक्ष्मी पधारे घर  ,
         दुल्हन और दहेज
         जब उतरे गाड़ी से
         लगे न किसी दुश्मन की नजर । 
         गली -गली बांटेंगे लड्डू  ,
         इच्छा पूरी करो भगवान ।।
         रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली  ,
         इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान ।

         विशेष लोग गर्व से कहते --
         दुल्हन हो सुशील एवं संस्कारी ,
         हमें दहेज से नफरत
         बस चाहिये इतना जो निभा सके
         एक आदर्श बहू की जिम्मेदारी ।
         खुशियों से महके घर-आंगन
         छोटे-बड़ों का हो सम्मान ।।
         रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली  ,
         इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान ।

         सादगी -शराफत रह गई पीछे ,
         धन-दौलत पर भटके ध्यान ।
         रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली  ,
         इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान ।

-०-
बलजीत सिंह
हिसार ( हरियाणा )
-०-

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