रिश्तों की डोर की
(कविता)
सादगी -शराफत रह गई पीछे ,
धन-दौलत पर भटके ध्यान ।
रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली ,
इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान । ।
मनचले लोगों के सुनो विचार --
लड़की हो चाहे उम्र में बड़ी,
सगाई से पहले
हमारे द्वार पर
हो जानी चाहिए गाड़ी खड़ी ।
घरवाले मजे से घूमेंगे
होगी मोहल्ले में ऊंची शान । ।
रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली ,
इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान । ।
लालची लोग भी करे पुकार --
हमें रंग-रूप से एतराज नहीं,
शर्त यही है
लेन-देन के मामले में
गड़बड़ ना हो जाये कहीं ।
अड़ोसी-पड़ोसी बार-बार देखें,
मजबूत और टिकाऊ सामान । ।
रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली ,
इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान । ।
साधारण लोग तो सोचे यही --
दो तरह की लक्ष्मी पधारे घर ,
दुल्हन और दहेज
जब उतरे गाड़ी से
लगे न किसी दुश्मन की नजर ।
गली -गली बांटेंगे लड्डू ,
इच्छा पूरी करो भगवान ।।
रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली ,
इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान ।
विशेष लोग गर्व से कहते --
दुल्हन हो सुशील एवं संस्कारी ,
हमें दहेज से नफरत
बस चाहिये इतना जो निभा सके
एक आदर्श बहू की जिम्मेदारी ।
खुशियों से महके घर-आंगन
छोटे-बड़ों का हो सम्मान ।।
रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली ,
इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान ।
सादगी -शराफत रह गई पीछे ,
धन-दौलत पर भटके ध्यान ।
रिश्तों की डोर बड़ी अलबेली ,
इन्हे जोड़ना-तोड़ना नहीं आसान ।
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