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ममतामयी माँ मेरी तुझ पर ,सब कुछ है कुर्बान ।
तुम्ही जगत को रचने वाली , इस सृष्टि की शान ।।
ब्रह्म देव ने आराधन कर ,शक्ति रूप तुम्हें पाया ।
सृजन कार्य को शुरु किया ,तब त्रिलोक बनाया ।
पालन करने को विष्णु के, तुम श्री अंग समानी ।
बनी शक्ति संहारक शिव की,श्रीगिरिजा महरानी ।
तुम ही वेद मयी गायत्री, सब शास्त्रों का ज्ञान ।।................॥१॥
तुम ही उमा रमा ब्रह्माणी, तुम शची सावित्री सीता ।
कमला काली व्रजेश्वरी तुम, हरि मुख निसृत गीता ।
दुर्गा दुर्गति नाशनि तुम हो ,तुमकुल कमल विकाशनि ।
तुम ही सकल विश्व में व्यापी, शक्ति सूर्य शशि भासनि ।
सकल सृष्टि के जीव जहनों की , एक तुम्ही हो जान ।।.............॥.२॥
मेधा प्रज्ञा कल्याणी तुम, पीताम्बर राज रानी हो ।
मुनीश्वरों की मनन शक्ति तुम , ज्ञान शक्ति ज्ञानी हो ।
पीताम्बरा पार्वती तुम हो धूमा कात्यायनी धन्या ।
गंगा यमुना सरस्वती तुम , जह्यनुऋषि की कन्या ।
स्वाहा स्वधा धरा धारा धन , तुम धरनी धर ध्यान ।।...............॥३॥
तूम काली कलकत्ते वाली , हिंगलाज महारानी ।
तुम मैहर की मातु शारदा , तेरी अकथ कहानी ।
जन्म दात्री तुम्हीं धात्री , गायत्री गंगा माँ गीता ।
तेरी कृपा कटाक्ष बिना न , नर कोई जग में न जीता ।
श्री समृद्धि सद बुद्धि तुम , माँ तुम्हीं वेद का ज्ञान ।।................॥४॥-०-
तुम्ही जगत को रचने वाली , इस सृष्टि की शान ।।
ब्रह्म देव ने आराधन कर ,शक्ति रूप तुम्हें पाया ।
सृजन कार्य को शुरु किया ,तब त्रिलोक बनाया ।
पालन करने को विष्णु के, तुम श्री अंग समानी ।
बनी शक्ति संहारक शिव की,श्रीगिरिजा महरानी ।
तुम ही वेद मयी गायत्री, सब शास्त्रों का ज्ञान ।।................॥१॥
तुम ही उमा रमा ब्रह्माणी, तुम शची सावित्री सीता ।
कमला काली व्रजेश्वरी तुम, हरि मुख निसृत गीता ।
दुर्गा दुर्गति नाशनि तुम हो ,तुमकुल कमल विकाशनि ।
तुम ही सकल विश्व में व्यापी, शक्ति सूर्य शशि भासनि ।
सकल सृष्टि के जीव जहनों की , एक तुम्ही हो जान ।।.............॥.२॥
मेधा प्रज्ञा कल्याणी तुम, पीताम्बर राज रानी हो ।
मुनीश्वरों की मनन शक्ति तुम , ज्ञान शक्ति ज्ञानी हो ।
पीताम्बरा पार्वती तुम हो धूमा कात्यायनी धन्या ।
गंगा यमुना सरस्वती तुम , जह्यनुऋषि की कन्या ।
स्वाहा स्वधा धरा धारा धन , तुम धरनी धर ध्यान ।।...............॥३॥
तूम काली कलकत्ते वाली , हिंगलाज महारानी ।
तुम मैहर की मातु शारदा , तेरी अकथ कहानी ।
जन्म दात्री तुम्हीं धात्री , गायत्री गंगा माँ गीता ।
तेरी कृपा कटाक्ष बिना न , नर कोई जग में न जीता ।
श्री समृद्धि सद बुद्धि तुम , माँ तुम्हीं वेद का ज्ञान ।।................॥४॥-०-
पता:
राजेश तिवारी 'मक्खन'
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