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Friday, 30 October 2020

रिश्वत का देवता (लघुकथा) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'

 

रिश्वत का देवता
(लघुकथा)
रेल अपनी पूर्ण रफ्तार में थी | कढाके की ठंड में पाखाने के नजदीक ठीक दरवाजे के सामने जमीन पर फटे-पुराने चीथड़ों में एक निर्धन किसान बैठा हुआ था | वह ठंड से कांप रहा था और बार-बार अपनी जेब को टटोल रहा था | वह यह प्रयास निरन्तर पिछले दस-पन्द्रह मिनट से कर रहा था |

दस - पन्द्रह मिनट पहले सब ठीक-ठाक था | एक कालेकोट वाला रिश्वत का देवता आया और उसने उस निर्धन किसान का टिकट चेक किया | टिकट सामान्य श्रेणी का था और बेचारा निर्धन किसान आरक्षित श्रेणी में घुस गया था | बस रिश्वत के देवता को मिल गया लूट का मंत्र... पूरे दो सौ रुपये लूटकर ले गया और ऊपर से तमाम भद्दी-भद्दी गालियाँ उपहार में दे गया |

उस निर्धन किसान की आँखों से एक प्रलयकारी ज्वालामुखी फूट रहा था | पता नहीं उस ज्वालामुखी की महाअग्नि से वो रिश्वत का देवता भस्म होगा कि बच जायेगा... यह तो परमेश्वर ही जाने |
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
-०-

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