बीज धर्म
(कविता)
मैं बीज धर्म नहीं भुला,
मैं मिट्टी की गंध नहीं भूला,
पसीने की सौगंध नहीं भूला,
सृजन का अनुबंध नहीं भूला,
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
धूप और छाँव से,
तन के अपार घाव से,
दान का वचन नहीं भूला,
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
प्यास की आस नहीं भूला,
भूख की पुकार नहीं भूला,
मेरा सहयोग का हस्त नहीं डोला।
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
खाक में मिल कर भी
अंकुर बन उठा हूँ मैं,
आसमाँ छूने की तड़प नहीं भूला,
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
मैं मिट्टी की गंध नहीं भूला,
पसीने की सौगंध नहीं भूला,
सृजन का अनुबंध नहीं भूला,
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
धूप और छाँव से,
तन के अपार घाव से,
दान का वचन नहीं भूला,
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
प्यास की आस नहीं भूला,
भूख की पुकार नहीं भूला,
मेरा सहयोग का हस्त नहीं डोला।
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
खाक में मिल कर भी
अंकुर बन उठा हूँ मैं,
आसमाँ छूने की तड़प नहीं भूला,
मैं बीज धर्म नहीं भूला।
-०-
गोरक्ष जाधव
गोरक्ष जाधव
मंगळवेढा (महाराष्ट्र)
-०-
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