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Saturday, 10 October 2020

आओ, चलें गाँव की ओर (गीत) - डॉ. त्रिलोकी सिंह


आओ, चलें गाँव की ओर
(गीत)
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ!चलें गांव की ओर।

    जहां नीम की छांव तले हम,
    प्रतिदिन बैठ थकान मिटाते।
    जहां प्रदूषण-मुक्त वायु से,
    सचमुच हम नवजीवन पाते।

जहां हमें अतिशय प्रिय लगता,
नित नन्हीं चिड़ियों का शोर।
 धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।
     जहां खेत की फसलों को हम,
     देख-देख हर्षित हो जाते।
     चना-मटर की मीठी फलियां,
     तोड़-तोड़ कर घर ले आते।

ईख चूसते, रस भी पीते,
जहां नहीं हम होते बोर।
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।

     जहां टहलने स्वजनों के संग,
     सुबह-सुबह बगिया हम जाते।
     आम और अमरूद तोड़ते,
     झउआ भर महुआ ले आते।

सचमुच तबियत खुश हो जाती,
करते नृत्य मगन जब मोर।
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।

    जहां नहर के बहते जल में,
    नित्य तैरने हम जाते थे।
    जहां पास के पोखर में हम,
    गाय-भैंस को नहलाते थे।

जामुन का था पेड़ पास में,
लाते जामुन खूब बटोर।
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।
-०-
पता:
डॉ. त्रिलोकी सिंह
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

 
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1 comment:

  1. बाह! बहुत सुन्दर रचना है, हार्दिक बधाई है आदरणीय !

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