आओ, चलें गाँव की ओर
(गीत)
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ!चलें गांव की ओर।
जहां नीम की छांव तले हम,
प्रतिदिन बैठ थकान मिटाते।
जहां प्रदूषण-मुक्त वायु से,
सचमुच हम नवजीवन पाते।
जहां हमें अतिशय प्रिय लगता,
नित नन्हीं चिड़ियों का शोर।
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।
जहां खेत की फसलों को हम,
देख-देख हर्षित हो जाते।
चना-मटर की मीठी फलियां,
तोड़-तोड़ कर घर ले आते।
ईख चूसते, रस भी पीते,
जहां नहीं हम होते बोर।
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।
जहां टहलने स्वजनों के संग,
सुबह-सुबह बगिया हम जाते।
आम और अमरूद तोड़ते,
झउआ भर महुआ ले आते।
सचमुच तबियत खुश हो जाती,
करते नृत्य मगन जब मोर।
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।
जहां नहर के बहते जल में,
नित्य तैरने हम जाते थे।
जहां पास के पोखर में हम,
गाय-भैंस को नहलाते थे।
जामुन का था पेड़ पास में,
लाते जामुन खूब बटोर।
धूल-धुएं से शहर प्रदूषित,
आओ! चलें गांव की ओर।
-०-
बाह! बहुत सुन्दर रचना है, हार्दिक बधाई है आदरणीय !
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