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Monday, 16 November 2020

आज-कल (कविता) - अखिलेश चंद्र पाण्डेय 'अखिल'

 

यह जीवन कितना देता है
 (कविता)

जिंदगी कसमसाने लगी आज-कल

मौत भी आजमाने लगी आज-कल

नीड़ निर्माण करने के सपने लिए

आँख भी डबडबाने लगी आज-कल

रोए-धोए बहुत उम्र की सीढियाँ

मैल रंगत दिखाने लगी आज -कल

देवता सा बना ही रहा आज तक

धीर नौका सिराने लगी आज-कल

टूटता भी नहीं ,दिल भी फटता नहीं

साँस दामन छुड़ाने लगी आज कल।

हे जगत के नियंता बुला लो मुझे

आपकी याद आने लगी आजकल।

-०-
पता 
अखिलेश चंद्र पाण्डेय 'अखिल'
गया (बिहार) 


-०-



***
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1 comment:

  1. वाह! हार्दिक बधाई है आदरणीय !

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