यह जीवन कितना देता है
(कविता)
जिंदगी कसमसाने लगी आज-कल
मौत भी आजमाने लगी आज-कल
नीड़ निर्माण करने के सपने लिए
आँख भी डबडबाने लगी आज-कल
रोए-धोए बहुत उम्र की सीढियाँ
मैल रंगत दिखाने लगी आज -कल
देवता सा बना ही रहा आज तक
धीर नौका सिराने लगी आज-कल
टूटता भी नहीं ,दिल भी फटता नहीं
साँस दामन छुड़ाने लगी आज कल।
हे जगत के नियंता बुला लो मुझे
आपकी याद आने लगी आजकल।
वाह! हार्दिक बधाई है आदरणीय !
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