तू गिरी के शिखरों पे
(कविता)
दीपक बन ज्योति बन जग में उजास कर
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
गहन अंधकार हो, राह दुश्वार हो
पग पग हो अड़चनें, मंज़िल उस पार हो
साहस रख मन मे तू, मुश्किल स्वीकार कर
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
डर जिसे शूल का, फूल उसे कब मिला
अग्नि में तपकर ही , स्वर्ण से वो खिला
सत्यम शिव सुंदरम से खुद को संवार कर
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
छलका न व्यर्थ में तू, नयनों के मोती
मन से जीत होती है मन से हार होती
स्वागत कर हर क्षण का उस पे अधिकार कर
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
-०-
डॉ आरती कुमारी
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार)
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
गहन अंधकार हो, राह दुश्वार हो
पग पग हो अड़चनें, मंज़िल उस पार हो
साहस रख मन मे तू, मुश्किल स्वीकार कर
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
डर जिसे शूल का, फूल उसे कब मिला
अग्नि में तपकर ही , स्वर्ण से वो खिला
सत्यम शिव सुंदरम से खुद को संवार कर
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
छलका न व्यर्थ में तू, नयनों के मोती
मन से जीत होती है मन से हार होती
स्वागत कर हर क्षण का उस पे अधिकार कर
तू गिरी के शिखरों पे सूर्य बन प्रकाश कर
-०-
पता-
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार)
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