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Sunday 24 November 2019

'कैकयी' एक आधुनिक सोच (लघुकथा) - अंजलि गोयल 'अंजू'


'कैकयी' एक आधुनिक सोच
(लघुकथा)
मंथरा बड़ी तेजी से कैकई महारानी के भवन की तरफ भगी जा रही थी। वहाँ जाकर जल्दी से राम के राजतिलक का समाचार रानी कैकई को सुनाया । समाचार सुनकर कैकई फूली ना समायी।  उसने मंथरा पर उपहारों की वर्षा कर दी और कहती जा रही थी, "आह! मेरे राम का राजतिलक ...मेरे प्राणों से प्यारे बेटे के सिर पर राजमुकुट...मैं राजमाता बन जाऊँगी ...राजमाता कैकई कहलाऊँगी।" महारानी खुशी में झूम झूम नाच रही थी तभी माँ शारदे ने उनके ह्रदय में प्रवेश किया और कैकयी को यह आभास हुआ जैसे माँ उससे पूँछ रही हों, "हे कैकय! बतलाओ तुम अपने प्यारे पुत्र राम के लिये कितना त्याग कर सकती हो?" कैकयी ने कहा, माँ उतना, जितना कोई नहीं ", "तो ठीक है.. तैयार हो जाओ.. त्याग करने के लिये ...अब वक्त आ गया है एक ऐसी रानी बनने का, एक ऐसी माँ बनने का जिससे दुनिया नफरत करेगी आने वाले युग उसपर थू थू करेगा और तुम्हारा खुद का बेटा भरत भी ।" कैकयी ने कहा, "माँ! अगर ऐसा करना मेरे राम के हित में है, राज्य और समाज के हित में है, तो •• ऐसा ही होगा।" माँ शारदे ने मन्थरा के मस्तिष्क में प्रवेश कर, मंथरा के उकसाने पर कैकयी को वो दो वर माँगने पर विवश कर दिया जिसमें एक में भरत को राजगद्दी और दूसरे में राम को चौदह वर्ष का वनवास और स्वयं के लिये कभी न मिटने वाला कलंक।
कैकयी ना माँगती वर तो वन में ,कैसे ,जाते राम
नही लिखी जाती रामायण ,ना हम जान पाते राम
खुद को बनाया पापिन और राम को भगवान
वो भी तो फूल माला के धागे सी है महान
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अंजलि गोयल 'अंजू'
बिजनौर (उत्तरप्रदेश)

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