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Tuesday, 19 November 2019

अनहोनी (लघुकथा) - श्रीमती सरिता सुराणा

अनहोनी
(लघुकथा)
" मम्मी - मम्मी ! इस बार तो हमारे यहाँ राजा भैया ही आएगा ना । मैं उसके साथ खूब खेलूंगी ।" झूमते हुए नन्ही शालू ने अपनी मम्मी के गले में अपनी सुकोमल बांहें डाल दी ।
"आपसे ये किसने कहा बेटे ? " मम्मी ने पूछा ।"
" वो सुबह दादी मां पापा से कह रही थी कि इस बार बहू के राजा बेटा ही होना चाहिए ।अगर फिर लङकी हुई तो उसका एबॉर्शन करवा देंगे ।मम्मी - मम्मी ये एबॉर्शन क्या होता है ? "
" कुछ नहीं बेटा " - कहकर प्रिया ने शालू को कसकर अपनी छाती से चिपका लिया ।एक बार फिर किसी अनहोनी की आशंका से वह अन्दर तक कांप गई ।
-०-
श्रीमती सरिता सुराणा
हैदराबाद (तेलंगाना)
-०-

***
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