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Thursday 7 November 2019

तुम्हारी यादें (कविता) - सविता दास 'सवि'


तुम्हारी यादें
(कविता)
खामोश नही 
रहने देती
शोर बड़ा
मचाती हैं
जबरदस्ती मुझसे
बाते करती हैं
तुम्हारी यादें

तुमसे मिली हूँ
जबसे
कुछ खिलने लगा
मन में
ये क्या सींचने लगी
बंजर मन में
तुम्हारी बातें

एहसासों का
रेशमी धागा
एक सिरा लिए
जिसका
फिरती थी तन्हा
दूसरे सिरे को
थामकर
बांधती है मुझको
तुम्हारे वादें

डरती हूँ बहुत
खोने से तुम्हे
लड़ती हूँ बहुत
हकीकत से अपने
कहीं हथेली से
रेत जैसी फिसल ना जाएँ
तुम्हारी यादें
-०-
सविता दास 'सवि'
शोणितपुर (असम) 

-0-







***
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2 comments:

  1. सुन्दर कविता है आप को बहुत बहुत बधाई बहन ! इस रचना के लिये।

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  2. अति सुन्दर रचना। बधाई आपको।

    ReplyDelete

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