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Thursday 7 November 2019

अस्तित्व (कविता) - तरुण कुमार दाधीच

अस्तित्व
(कविता)
नहीं था मेरा कोई अस्तित्व
हाथों से दीवारें दूर थी
पांव जमीं पर जमे नहीं थे
उपहास, तिरस्कार, उपेक्षा
घेरे रहते थे बादलों की तरह
जिस दिन से
लगन,उत्साह, निष्ठा के साथ
लक्ष्य का बीज वपन कर
पल्लवित-पुष्पित करने में लगा
पुरुषार्थ से
प्रारब्ध बनने लगा.
धारा की विपरीत दिशा में चलकर
जीवन संवरने लगा.
आज अस्तित्व लिये
अपनी जमीं पर खड़ा हूं
मेरे लिये
तेरे लिये
हम सबके लिये
-0-
तरुण कुमार दाधीच
उदयपुर (राजस्थान)

-०-

***
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