एक वृक्ष की व्यथा
(आत्मकथा)
नन्हा अंकुर जब जमीन फाड कर उपर निकल आया तो बहुत खुश था । उसे ताजी-ताजी हवा , सूरज की नन्ही किरणें व सबके मुस्कुराते चेहरे बडे ही मनभावन से लग रहे थे । धीरे-धीरे अंकुर से पौधा व पेड और फिर वृक्ष बन गया । मौसम परिवर्तन के साथ नए पात आते और पुराने डाली का साथ छोड देते । अब फूल -फल वृक्ष पर लहराने लगे थे । भंवरे भी फूलों के पास मंडराने लगे । वृक्ष की हरियाली देख गांव भी खुश था । हरा-भरा पेड़ लोगो को शीतल छाया देता , कोई उसके नीचे अपना भोजन खाता तो कोई अपनी थकान दूर करता । पक्षीयों की चहचहाट से गांव मे खुश हो जाता था । कई पक्षियों के घोंसले भी उस वृक्ष पर थे । सुबह कोयल की मीठी सुरीली वाणी तो मानो सबके मन मे मिश्री ही घोल देती थी । अब तो वह वृक्ष मीटिंग पाइंट तक बन गया था और गांव की पहचान भी।
समय आगे बढ़ने लगा । पेड पर धीरे धीरे फूल-फल कम होने लगे ।
गांव भी बदलने लगा । वृक्ष की हरियाली शीतल छाया देती ही रहती थी । लेकिन कुछ लकडहारों की नजर वृक्ष पर टिकी रहती थी । एक दिन कुछ लकडहारे कुल्हाड़ी लेकर वहां पहुच गए उन्हें देख पेड सिहर उठा उसके तनों ने पानी छोडने लगा ।पत्तों ने सिर झुका लिया ।शीत हवा के बहाव मे पत्ते धीरे-धीरे भयभीत से डोल रहे थे मानो उन्हें ज्ञात हो गया था कि उनकी जिंदगी अब बस समाप्त होने वाली है । लकडहारों ने जैसे ही एक डाली को कुल्हाडी से काटा तो सारी डालियां कांपने लगी पत्ते रुआंसे हो गए । अपने साथियों को नीचे जमीन पर गिरा देख दुखी हो गए थे । सब पत्ते एक दूसरे से लिपटने के लिए व्याकुल थे । उनकी पीडा असहनीय थी जो हम मानव समझ नही सकते । अंत मे लकडहारों ने बडा ही जोर लगाकर पेड के तने को काट डाला ।सारी डालियां जमीन पर पडी अपने लहराते पत्तों को देख रो रही थी । पक्षी अपना घोंसला ढूंढ रहे थे । कोयल अपनी डाली ढूंढ रही थी । गांव के बच्चे उस पेड के तने को ढूंढ रहे थे जिसपर चढकर वे कभी पेड पर चढते थे । गांव के लोग मीटिंग पाइंट ढूंढ रहे थे । पध का राही धूप की तपन मे वीरान रास्ते पर चलते ठिठक गया।सोच रहा कि कही तो शीतल छाया मिल जाए जहाँ वो सुकून से बैठ कर सांसे ले सके । वह पथिक तो बस चले आ रहे थे लेकिन छाया नही मिली,,,
वृक्ष के काटने के गम मे धरती भी बारिश के तेज प्रवाह को रोक ना सकी और पूरा गांव बाढ के पानी मे जलमग्न हो गया ।
वैसे भी ऐसी मान्यता है कि केले के पेड पर जब फल लगते है तो फल को काटने के लिए पूरा तना काटना होता है क्योंकि केले का पेड कहता है कि फल मेरा बच्चा है और उसे काटने के लिए मानव पहले उसे यानि तना काटे अन्यथा यह अपशगुन होता है ।
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पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'
पर्यावरण के प्रति आपकी संवेदनशीलता आपकी कथा के एक एक शब्द में मुखरित
ReplyDeleteसशक्त पर्यावरण कथा
सुन्दर
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