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Thursday, 14 November 2019

दांगलिक (व्यंग्य- कथा) - अलका 'सोनी'

दांगलिक
(व्यंग्य- कथा)
सुनो ,सुजीत जी के लिए जो लड़की फाइनल कर रहे थे उसका क्या हुआ? धर्मपत्नी के इस प्रश्न पर प्रतीक बोला - अभी कुछ तय नहीं कर पा रहा हूँ। उसकी कुंडली सुजीत की कुंडली से मिल नही रही है। लड़की घोर मांगलिक है। अभी दो-तीन पंडितों से और राय ले लूँ फिर कुछ कह पाऊंगा।
"और दो-तीन पंडित !!!! कोई मांगलिक-वांगलिक नही होता। जब जन्म का समय ही सही- सही निर्धारित नही किया जा सकता कि कितने मिनट, कितने सेकंड में फलां ने जन्म लिया तो उसकी सही कुंडली कैसे बनाई जा सकती है? हमेशा की तरह इस बार भी प्रेरणा की बातों का जवाब प्रतीक के पास नही था। लेकिन वह भी किसी से कम क्यूँ रहे इसलिए धर्मपत्नी की तारीफ भी नही की उसने।
अपनी बात आगे बढ़ाती हुई प्रेरणा बोली कि सोचो हमारी कुंडली में कोई मांगलिक नही था। फिर भी हमारे झगड़े को देखकर लोग डर जाते हैं ,कभी -कभी तो ऐसा लगता है कि तलाक लेकर ही बात रुकेगी।
ये तो कुंडली में नही लिखा था हमारे। उसमे कहीं भी ये नही लिखा था कि हम 'मांगलिक' नही "दांगलिक" हैं। फिर भी हमारी लाइफ चल रही है। आज एक जगह मांगलिक सुनकर अच्छे रिश्ते को छोड़ देना ठीक नहीं होगा। दो और पंडित देखेंगे उनके हिसाब से मांगलिक ना हुआ तो क्या करोगे?
इसलिए कुंडली मिलाना छोड़ कर दोनों के मन मिल जाये इस पर ध्यान दो। जीवन मन मिलने से चलता है कुंडली मिलाने से नही।
-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर (पश्चिम बंगाल)



-०-
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