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Thursday, 14 November 2019

कैसा ये बदलाव? (कविता) - शालिनी जैन



कैसा ये बदलाव ?
(कविता)
सशक्त  है बदलाव में 
धरा का दर्द  ज्ञात नहीं 
जुड़ाव संस्कृति से था जो 
वो हमे अब भाता नहीं 
बदलाव सिर्फ बदलाव 
अच्छे से बुरे की ओर जा रहे ओर मान रहे बदलाव 
इस बदलाव ने धरा का छीन लिया मान 
दर्द सिर्फ धरा का नहीं 
शीन हो गए सभी रिश्ते नाते हो या इंसान 
साँसों को भारी पड़ रहा बदलाव 
पेड़ों को काट कंक्रीट की बस्तिया बसा रहे 
अब तंग गलियारों में सांसो को ढूंढ़ते नज़र आ रहे 
बदलाव कैसा है ये बदलाव 
जिस सभ्यता से थे जुड़े 
उसको खो कर 
आज फिर ढूंढ़ते नज़र आ रहे 
ये सभ्यता का  प्रेम नहीं 
प्रेम है सांसो का 
जिनको हम खोते जा रहे 
धरा को कर आहत हम सब कुछ खो चुके 
अंधकार को मान जीवन
आगे बढ़ते जा रहे 
बदलाव ये बदलाव 
कैसा ये बदलाव ?
-०-
शालिनी जैन 
गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-

***
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1 comment:

  1. अच्छी रचना,गागर मे सागर

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