*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Thursday, 14 November 2019

सन्यासंन (लघुकथा) - डॉ० भावना कुँअर सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

सन्यासंन
(लघुकथा)
चेतना का मन बहुत भारी था। बार-बार आँखे नम हुईं जाती थी। तभी माँ का फोन आ गया तो सब्र का बाँध टूट पड़ा सिसकियों में सारी बात माँ को कह डाली। 

अब चौंकने और दुखी होने की बारी माँ की थी, माँ ने कहना शुरु किया- "जिस औलाद को पाने के लिए तूने इतनी मन्नतें माँगी,इतने कष्ट सहे,अपनी जान की भी परवाह नहीं की,उनके पालन पोषण में अपनी पूरी ज़िदगी ही बदल डाली,जिस पर इतना भरोसा था कि वो तुम्हारी भावनाओं और प्यार का भरोसा कभी नहीं तोड़ेगी वो भी आज तुम्हें छोड़कर जाने की बात कर रही है।"

बड़ी बेटी के जाने जख़्म तो अभी तक भरे नहीं थे ।अब ये भी जाने की बात कर रही है तो मैं कैसे जीऊँगी इसके बिना । यही बातें सोचकर चेतना ने अपनी बड़ी बेटी से मदद माँगी उसने आश्वासन दिया कि वो समझाएगी कि मात्र 15 साल की उम्र में माँ से दूर ना जाए।वो टूटकर बिखर जाएगी, एकदम अकेली पड़ जाएगी तुझसे बहुत उम्मीदें लगा रखीं हैं माँ ने मैं तो दूर हूँ ही तू मत जाना"।

चेतना की जान में जान आई तभी फोन की घण्टी खनखना उठी बड़ी बेटी का फोन था मन खुशी से उछलने लगा तभी उधर से आवाज आई- "माँ मैंने छोटी को समझा दिया है वो अब कहीं दूर नहीं जाएगी,कहीं अकेली भी नहीं रहेगी,वो बस अब मेरे साथ रहेगी मेरी ही तरह सन्यासंन बनकर"।

चेतना के हाथ से फोन छूट गया और पत्थर की मूरत बन जमीन पर गिर गई, क्या माँगा था क्या मिला।
-०-
डॉ० भावना कुँअर 
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

No comments:

Post a Comment

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ