अशोक आनन के हाइकु
(हाइकु)
भींगी पलकें
कुलबुलाती आंतें
आम आदमी ।
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देख घटाएं
थर - थर कांपते
घर माटी के ।
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नहीं चीन्हते
देहरी- दरवाजे
बीच दीवारें ।
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रात सर्दीली
हाथ - पांव रजाई
घर स्वप्न
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आंखें सावन
ये ज़माना है रेत
पेट सिगड़ी ।
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प्रयास व्यर्थ
बिखरना नियति
जीवन पारा ।
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नभ रजाई
फुटपाथ गुदड़ी
जीवन पौष ।
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नभ सितारे
नून , तेल , लकड़ी
ग़रीब बौने ।
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चुभें गले में
पीड़ा असहनीय
संबंध फांस ।
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