यदि....
(कविता)
बेर की झाड़ी होती
तो तुम अवश्य ही
सर्दियों की सुहानी धूप में
अपनी सहेलियों सहित
बेर खाने
मेरे घर आती।
पतली डालों को झुकाकर
तोड़ डालती सभी
कच्चे-पक्के बेर,
कुछ मुंह में भरती
कुछ भरती झोली में
कुछ तुम खुद खाती
कुछ बंटते हमजोली में।
मैं दूर बैठ, मौन
सब देखा करता
मन ही मन
यह सोचा करता
इतने ही बेर कल और लगे
और यह कल कभी न बितें।
-०-
पता-
प्रकाश तातेड़
उदयपुर(राजस्थान)
-०-
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