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Tuesday 14 January 2020

ऐ दरिंदों (कविता) - संजय कुमार सुमन


ऐ दरिंदों
(कविता)
ए दरिंदो सुनो,
मैं तुम्हारी मां हूं,
मैं तुम्हारी बहन हूं,
मैं तुम्हारी प्रेमिका हूं,
मैं तुम्हारी पत्नी हूं,
ए दरिंदों सुनो।
मैं तुम्हारी जननी हूं,
मैं तुम्हारी रक्षक हूं,
मैं तुम्हारी पालनहार हूं,
मैं तुम्हारी संकटमोचन हूं,
ना जाने क्या-क्या
मैं हूं ।
बावजूद इसके,
तुम मुझे जलाते हो,
तुम मेरा मर्दन करते हो,
अपनी मर्दानगी दिखाते हो,
सरेआम मुझे नीलाम करते हो,
ना जाने मैं क्या क्या हूँ।
ऐ दरिंदों सुनो,
मैं तुम्हारी मां हूँ।
काश मैं यदि ऐसा जानती कि,
तुम मैं मानवता नहीं बचेगी,
तुम हैवान बन जाओगे,
तुम भक्षक हो जाओगे।
सचमुच मैं तुम्हें,
उसी समय अपने गर्भ में,
मार डालती,
पर,
मेरी मानवता तो देखो,
मैंने तुम्हें जन्म दिया,
पाला पोसा,
अपना दूध पिलाया,
फिर तुम मुझे,
अपनी हैवानियत दिखाते हो,
ऐ दरिंदों सुनो,
मैं तुम्हारी मां हूं।
-०-
संजय कुमार सुमन
मधेपुरा (बिहार)
-०-

***
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