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Tuesday, 14 January 2020

ऊँचाइयों पर तो आसमान है (कविता) - सविता दास 'सवि'


ऊँचाइयों पर तो आसमान है
(कविता)
विवश होकर
क्यों कुछ करना है
कर्तव्य के पथ पर
दृढ़ संकल्पित होकर
यूँही बस चलना है
त्याग और संघर्ष
एक सिक्के के
दो पहलू हैं
व्यक्तित्व अपना
इसीसे तो
निखरना है
आँसूं आए तो
बहने देना
कुछ अंतर में भी
जमने देना
देखना ये बूंदे ही
एक दिन चट्टान
बन जाएंगी
आनेवाली पीढ़ी फिर
इनमे प्रेरणा की
कहानियाँ लिख पाएंगी
आज कठिन लग रहा जो
कल सरल हो जाएगा
इन क्षणिक कठिनाइयों
के सामने तेरा
प्रण और कठिन हो जाएगा
अपने पे आजा तू
देख तेरी क्षमता
जिसके सामने
हर बाधा धराशायी है
तेरी छलांग से बड़े गड्ढे
किसने यहाँ बनाए हैं
तू जानता है
आत्मबल ही
तेरी पहचान है
तू बस जड़ो को
फैला अपनी ज़मीन पर
अनन्त उँचाई पर तो
अभी आसमान है।
-०-
सविता दास 'सवि'
शोणितपुर (असम) 


-0-
***
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1 comment:

  1. सुन्दर कविता के लिये आप को बधाई है।

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