दो साल की मेरी प्यारी बिटिया,
बड़ी चुलबुल -चंचल नटखट है ।
काम करने नही देती मुझे चैन से
दिन भर शरारत करती रहती है ।
दफ्तर के किताबों को तकिया समझकर
उसपर वह सर रखकर सो जाती है ।
मेरी कलम को ब्रश समझकर
अपने बदन पर चित्र बनाने लगती है
नेहरू जी के कोट पर लगे
लाल गुलाब को ,
अपने तरीके से सजाने लगती है
कभी पीला तो कभी नीला बना देती है
बापू जी के चिकने सर पर
मेरी काली स्याहीयुक्त कलम से
बाल उगाने लगती है ।
कभी उनके सफेद चश्मे को
रंगीन बनाने लगती है
मेरी कलम और पेन्सिल को हाथ लगाते ही
बड़ी चित्रकार बन जाती है ।
मेरी कलम और किताबों के पास जाते ही
वह बड़ी विद्वान बन जाती है ।
कभी-कभी टीवी मे नृत्य देखकर
खुद ही थिरकने लग जाती है
अपने हाथ-पैर को घुमा-घुमाकर
डिस्को डांसर बन जाती है ।
तिलचट्टे को देखते ही ,
झाडू से मार गिरा देती है ।
घर के बाहर बन्दर को देखते ही ,
घर के अंदर ही लाठी घुमाने लगती ।
गुस्से से जब मै उसे घूरता ,
उल्टा वो मुझपे गुर्राने लगती है ।
दो साल की मेरी सु-कोमल बिटिया ,
चुलबुल चंचल प्यारी नटटखट है ।
-०-
सुरेश शर्मा
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें
No comments:
Post a Comment