Friday, 3 January 2020
जाड़ा आया (बाल कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
जाड़ा आया
(बाल कविता)
आया-आया जाड़ा आया
किट-किट दांत बजाता आया
सूरज जी को खूब लताड़ा
धूप रानी को भी पछाड़ा
आया-आया जाड़ा आया
किट-किट दांत बजाता आया
मांग रहा तिल-गुड़ की चासनी
और मूंगफली की दाना-दानी
ओढ़ रजाई तोड़ रहा है खाट
शूट-बूट में देखो इसके ठाट
खा-खाकर घर का किया कबाड़ा
कहो कहाँ से भरा जायेगा भाड़ा
आया-आया जाड़ा आया
किट-किट दांत बजाता आया
ठिठुरा बैठा, दुबका बैठा रामू
सर्दी-जुकाम से परेशान है श्यामू
शाल-दुशाले ओढ के निकलो बाहर
तो निश्चय ही सर्दी की होगी हार
आया-आया जाड़ा आया
किट-किट दांत बजाता आया
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बाल कविता का शिल्प पक्ष कमजोर है। मात्रा भार लय तुक को और बेहतर करने की जरूरत है।
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