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Sunday, 5 January 2020

मेरे हमसफ़र (कविता) - दीपिका कटरे

मेरे हमसफ़र
(कविता)

ओ मेरे हमसफ़र,
बड़ी लंबी है डगर
फिर क्यों न करे हम ,
एक-दूसरे की कदर।
कर लो तुम मेरी
और मैं कर लूँ तुम्हारी कदर।

चाहे हम जाए,
किसी भी शहर या नगर ,
रखेंगे अपने परिवार पर नजर
चाहे सुख का हो पहर ,
या दुःख का कहर ,
चलेंगे हम साथ- साथ ,
थोड़ा ठहर -ठहर
ओ मेरे हमसफ़र....

ध्यान रखना,
एक बात का मगर
तुम हो सागर ,
तो मैं हूँ लहर
चलना तो है हमें साथ साथ ,
फिर किस बात का है डर
थोड़ा लड़कर तो,
थोड़ा झगड़कर ,
रहना तो है हमें एक ही घर पर
फिर क्यों न करें,
हम एक दूसरे की कदर
ओ मेरे हमसफ़र....
जीवन डोर बंधी अपनी,
रिश्ता हर पल निभाएँगे
बिछड़ेंगे न कभी
न अलग रह पाएँगे ,
एक दूसरे से कभी दूर ही सही,
फिर क्यों न करे हम ,
एक दूसरे के प्यार की कदर
ओ मेरे हमसफ़र,
बड़ी लंबी है डगर
ओ मेरे हमसफ़र....
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

***
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5 comments:

  1. आपका तो जवाब ही नहीं हैं।। बहुत अच्छी कविता हैं।।mam।।,,,💐

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  2. Aapki Kavita aapki taraha khubsurat he

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  3. बहोत अची कविता है 👌👌👌👌👍

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  4. Bahut achhi h kavita 👌👌👌👌

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  5. Bahut achhi h kavita 👌👌👌👌👌

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