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Sunday, 5 January 2020

रंगीन चश्मा (कविता) - छगनराज राव

रंगीन चश्मा
(कविता)
हाँ, मैंने पहन रखा है
एक रंगीन चश्मा,
शौक से नहीँ
बल्कि इसलिए कि
मेरी आँखों में बसा रखा है
एक नूर
मुहब्बत का..........
जिसे कहीं तुम्हारी नज़र
न लग जाए।
जिसको मैंने दिल में बसाया,
उसे आँखों में भी बसा रखा है
ताकि उसका चेहरा देखता रहूं
सोते - जागते हुए
रात-दिन।
और हाँ कोई और ना देख पाए
मेरे कोहिनूर को,
इसलिए मैंने पहन रखा है
एक रंगीन चश्मा।
-०-
पता
छगनराज राव
जोधपुर (राजस्थान)
-०-

***
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