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Sunday, 5 January 2020

नदी (कविता) - अपर्णा गुप्ता

नदी
(कविता)
नदी हूँ मै
बहती हूँ चुपचाप
पर सिर्फ बहती नही हूँ
जूझती हूँ पत्थरीली राहो से
चट्टानों से टकरा कर भी रूकती नही
हो जाती हूँ और निर्मल स्वच्छ
नदियाँ सिर्फ़ बहती नही
बल्कि वो ढोती हैं
गन्दगी और कचरा
उतराते निथारते उभरती है
और स्वच्छ सुंदर होकर
नदियाँ सिर्फ़ बहती नही
वो प्रतीक है अन्ततः चिर मिलन का
जैसे आत्मा का परमात्मा से मिलन का
नदियाँ सिर्फ़ बहती नही है
वो समा जाती है समन्दर में
और मिल जाती है
सदा के लिये 
अथाह बहने को 
फिर सबकुछ सहने को
हाँ मै नदी हूँ
-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
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1 comment:

  1. कम शब्दों में बहुत कुछ अच्छा कहने की सफल कोशिश।

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