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Wednesday, 12 February 2020

रहस्य (कविता) - गीतांजली वार्ष्णेय

रहस्य
(कविता)
"रहस्य जीवन केछिपे हैं कुछ ऐसे,
सागर में सीप, सीप में मोती हो जैसे।
चाहत में ऊंचाइयों पर उड़ने की,
'मन'इन रहस्यों को समझे कैसे।
आस है आसमां छूने की,
फिर इन गहराइयों में उतरे कैसे।
आशा,और निराशा भँवर जीवन के,
बिना समझे महत्व इनका,भँवर में उतरे कैसे।
खग-विहग स्वछंद आसमां पर उड़ जाते हैं,
पर दाना चुगने उतर जमीं पर आते हैं;
फिर रिश्ता जमीं का आसमां से टूटे कैसे।
वक्त की चोट खाकर ह्रदय,धरती की गोद में सो जाता है,
निकल जीवन भवँर से ऊपर उठ जाता है,;
फिर सम्बन्ध सागर ,जमीं, आसमां का,
मानव भूल जाता हैं कैसे।।
-०-
पता:
गीतांजली वार्ष्णेय
बरेली (उत्तर प्रदेश)
-०-
***
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