दीपक तले
(ग़ज़ल)
दीपक तले अँधेरा क्यू है
ओझल अभी सवेरा क्यू हैक्यों सब नहीँ है साँझा घर में
वो तेरा ये मेरा क्यों है
देख के उनका रूप सलोना
चाँद वहीँ पे ठहरा क्यों है
क्यों नहीँ सुनता मजलूमों की
ऊपर वाला बहरा क्यों है
कुछ भी नहीँ सुझाई देता
कोहरा इतना गहरा क्यों है
नाग सभी दिल्ली में बैठे
फिर ग़मगीन सपेरा क्यों है
जाल अभी फेंका है जल में
उदासीन ये मछेरा क्यों है
राजनीति की इस बिसात पर
हर इंसा इक मोहरा क्यों है
मंज़िल पर जब मैं पहुँचा तो
उतरा सब का चेहरा क्यों है
-०-
पता:
डॉ. रमेश कटारिया 'पारस'
ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
-०-
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