
पगली
(कविता)
मै पगली फिर ने लगी गली गली लेके गोपाल का नाम देखती दुनिया सारी कहती मुझे चली ढूँढँने गिरधर गोपाल कलियुग में कभी आते है क्या कोई देव यहाँ ये तो पगली घट घट मे देख रही कृष्ण भगवान अरे!पगली मत बन तू मृग जैसी उदर में रख के कस्तूरी वन वन में ढूँढँने चली तेरे ही हृदय में बसे है तेरे गिरिधर गोपाल ।। रे! पगली चली गली गली लेके हरी का नाम ।-०-
पता :
डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)
बेलगाव (कर्नाटक)
बेलगाव (कर्नाटक)
सुन्दर
ReplyDeleteबाह! बहुत सुन्दर कविता है आप कि बहजत बहुत बधाई है।
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