शजर बन पड़ा हूँ
(नज्म)मिट्टी की इस-इस तपिश मे
बारिशों के नन्हे इश्क में
जितना मैं पड़ा हूं
शजर पड़ा हूं... मैं शजर बन पड़ा हूं
आफताबी उस किरण से
इस फिजा के फिरते मन से
जितना मैं जुड़ा हूं
शजर पड़ा हूं... मैं शजर बन पड़ा हूं
डर अंधेरों का बहुत था
मेरा आंचल मेरा घर था
जिनसे मैं लड़ा हूं
शजर बन पड़ा हूं... मैं शजर बन पड़ा हूं
हौसलों में जान मेरा
हर घड़ी इम्तिहान मेरा
अब तक दे खड़ा हूं
शजर बन पड़ा हूं ...मैं शजर बन पड़ा हूं
हर घड़ी हर क्षण-क्षण में
मुश्किलों के रण-बण में
जितना मैं अड़ा हूं
शजर बन पड़ा हूं ...मैं शजर बन पड़ा हूं
जो अब बुलंदी मिल गई है
सागर में बूंदी मिल गई है
तो साहिल पे खड़ा हूं
शजर बन पड़ा हूं ...मैं शजर बन पड़ा हूं
नस नस में बूंदे पानी की है
बातें किस्से कहानी की है
जो तुमसे कह पड़ा हूं
शजर बन पड़ा हूं ... मैं शजर बन पड़ा हूं
-०-
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