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Tuesday, 7 April 2020

लॉकडाउन (लघुकथा) - बजरंगी लाल यादव

लॉकडाउन
(लघुकथा)
" पापा, आप घर में सबसे ज्यादा किसे प्यार करते हैं?" हर्ष ने इतराते हुए अपने पापा से कहा।
"मुझे तो, अपना राजा बेटा हर्ष प्यारा है" सुरेश ने हर्ष के गालों को चूमते हुए कहा।
" और स्वीटी दीदी?" हर्ष ने दूसरे कमरे में बैठी स्वीटी की ओर इशारा करते हुए कहा।
" स्वीटी और तुम दोनों मेरे लिए प्यारे हो"
" और मेरी मम्मी!"
" तुम्हारी मम्मी, खाना अच्छा बनाती है, इसलिए वह भी मुझे बहुत प्यारी है"
" इसका मतलब यह हुआ कि आप दादाजी और दादीजी से प्यार नहीं करते?" हर्ष ने इस बार गंभीर होकर कहा। 
" नहीं बेटे! वह तो मेरे पालनकर्ता है, मेरे लिए तो वह भगवान के बराबर है"
" अच्छा पापा, संजय अंकल और राजू अंकल से आप प्यार करते हैं?" हर्ष ने इस बार भी गंभीर होकर कहा। 
" बेटे! वह तो मेरे दोस्त हैं"
" क्यों,दोस्तों से प्यार नहीं होता है?"
" दोस्तों से भी प्यार होता है; शायद तुमने शोले और दोस्ती फिल्म ठीक से नहीं देखी, अच्छा! अब आप पढ़ने बैठो?"
" बस पापा! एक आखिरी सवाल, क्या आप को अपने देश से प्यार है?"
" यह कैसा सवाल है?"
" बस पापा, आप केवल हांँ और ना में जवाब दें?"
" हांँ...! बिल्कुल मुझे अपने देश से बहुत प्यार है"
" तो पापा, इस तपती दोपहरी में आप हाथों में ताश के पत्ते लेकर घर से बाहर कहां जा रहे हैं, देश में अभी लॉकडाउन चल रहा है। जिसका मतलब हुआ, आप अपने परिवार के साथ घर पर ही रहे। ऐसा करने से आप अपने परिवार और देश को कोरोना वायरस जैसे महामारी से सुरक्षित बचा सकते हैं, इसलिए प्लीज़ ऽऽ पापा! आप घर से बाहर ना निकले" हर्ष के आखि़री सवाल से हारकर सुरेश घर की चारदीवारी में अगले इक्कीस दिन के लिए कैद हो चुका था।
-०-
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)
***
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