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Thursday, 23 July 2020

समझते थे (ग़ज़ल) - नदीम हसन चमन



समझते थे
(ग़ज़ल) 
लोग सब फूल वाले ख़ार समझते थे
कैसे पत्थरों को वफ़ादार समझते थे

इक पाया मैं भी हूँ मेरी भूल निकली
मुझे लोग रास्ते की दीवार समझते थे

हवा चराग़ की कुर्बानी से जल उठेगी
सितारे चाँद को गुनाहगार समझते थे

आवाज़ बग़ावत की रोज़ क़त्ल होती
तू ज़िंदा है वो तो शिकार समझते थे

इक वो ईमान हक़ इंसाफ का दौर था
बंटवारे को लोग अपनी हार समझते थे

उठा अपनी लाश चल निकल नदीम
वे चेहरे नहीं जो जांनिसार समझते थे
-०-
पता
नदीम हसन चमन
गया (बिहार) 
-०-


***
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