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Friday, 31 July 2020

आश्चर्य (लघुकथा) - सौरभ कुमार ठाकुर

आश्चर्य
(लघुकथा)
आज सुबह जितेश का फ़ोन आया; हिमांशु ने फ़ोन रिसीव किया बोला: हेल्लो, क्या हालचाल जितेश, कैसे हो ?
जितेश बोला; क्या भाई तबियत खराब है ?
"भाई जितेश तुम अब बार-बार बिमार कैसे हो जाते हो ?" हिमांशु ने पूछा !
"भाई याद है मुझे आज भी वह दिन जब मै बच्चा था,और गाँव में रहता था । कोई डर नही,कोई गम नही । जो मन में आया खाया,खेला ! कभी बिमार नही होता था । पर आज शहर में रहता हूँ,हर पंद्रह दिन पर बिमार हो जाता हूँ । आज भी वही खाना खाता हूँ,जो गाँव में खाता था । गाँव में कुएँ और चापाकल का पानी पीता था आज मिनिरल वॉटर पीता हूँ ।फिर भी मैं बिमार हो जाता हूँ ।"एक बात समझ नही आता गाँव के मुकाबले शहर में सेहत का ध्यान अच्छे से रखता हूँ, फिर भी यार हर पंद्रह-बीस दिन पर बिमार हो जाता हूँ ।जितेश बोला ।
"हिमांशु उसकी बातों को सुनकर आश्चर्य में पड़ा रह गया...!"
और अंत में कुछ सोचकर बोला; "हाँ यार बात तो सही है ।"
-०-
सौरभ कुमार ठाकुर
(बालकवि एवं लेखक)
मुजफ्फरपुर (बिहार)
-०-


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1 comment:

  1. बहुत सुन्दर। हार्दिक शुभकामनाएँ।

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