वेदना गान
(कविता)
असहाय जीव हो गया अमानवीय कृत्यों का शिकार,ऐसी 'असभ्य- साक्षरता' पर है मुझको धिक्कार।
तनिक हुआ न हृदय में कम्पन,नयनों में अश्रु नहीं आये,
ऐसे पाषाण हृदय वाले आखिर क्यों मानव जन्म हैं पाये,
क्या दोष था उस हथिनी का, जो भूख से थी अति व्याकुल?
उदर की भूख तृप्ति का उसे फल प्राप्त हुआ बेकार,
इंसानों पर भरोसा करके काया हुई जल- जल कर अंगार।
गर्भ में ही जीवित जल गया नन्हा हाथी शावक,
अंतर्मन को झुलसाए प्रतिपल दुःख की पावक,
यदि तुम किसी भूखे को भोजन नहीं दे सकते हो,
तो फल रूपी मृत्यु देने का भी नहीं तुम्हें अधिकार।
तुम्हारे अपराधों की सजा तुम्हें मिलेगी बारम्बार।
मनुज नहीं तुम दैत्य हो, न कहना स्वयं को मानव,
तुम्हारे क्रूर कृत्यों ने बना दिया तुम्हें दानव,
हृदय प्रस्तर हो चुका तुम्हारा,जम गया है रक्तप्रवाह?
जो कर्ण असमर्थ रहे सुनने में, एक जीव का चीत्कार,
क्या तुम्हारे अंतस में ग्लानि का, होता नहीं हाहाकार?
हम जी रहे हैं अब कैसे निकृष्ट समाज में?
दृग झुक रहे हैं पीड़ा, संताप और लाज में,
उस निरीह प्राणी की मूक पीड़ा आकाश से बरसेगी,
बनकर प्राकृतिक आपदाओं का असीमित भंडार।
लम्हों की इस खता को सदियों भोगेगा संसार।
हार्दिक बधाई मैम सुन्दर रचना के लिये।
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