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Tuesday, 28 July 2020

प्रकाशक / अप्रकशक (व्यंग्य) - मधुकांत

प्रकाशक / अप्रकशक
(व्यंग्य)
रमेश --दिवाकर तुम प्रकाशक संघ की बैठक में इतनी जल्दी कैसे आ गए और अकेले कैंटीन में बैठे क्या कर रहे हो ? दिवाकर --रमेश जी यही लालच रहता है आप जैसे पुराने  प्रकाशको के साथ बैठकर कुछ सीख ले ली जाए ! रमेश ---तो बताओ तुम्हारा प्रकाशन कैसा चल रहा है?,,,, देखो एक बार बेरे को बुलाकर कुछ चाय पानी का ऑर्डर दे दो ,,,,,आज तो खाना भी नसीब नहीं हुआ । दिवाकर --रमेश जी मैं तो बाहर का कुछ खाता नहीं, आप अपनी पसंद का आदेश दे दे !
रमेश ने उंगली से बेरे को बुलाया ,दो चाय और एक प्लेट पकोड़े का आदेश दे दिया ।
--हां ,अब बताओ अपने प्रकाशन के बारे में ,,,।
दिवाकर-- क्या बताएं 2 वर्ष पूर्व 10 पुस्तकें प्रकाशित की थी! 20-20 पुस्तकें लेखकों को भेज दी ,शेष घर पर पड़ी है ! रमेश --दिवाकर यह बताओ तुम प्रकाशक क्यों बने ? दिवाकर --आप से क्या पर्दा ,कोई हमारी पुस्तकें प्रकाशित नहीं कर रहा था  तो दो पुस्तके अपनी तथा 8 पुस्तकें अपने साहित्यिक मित्रों की प्रकाशित कर ली।  रमेश-- देखो भैया, अधिक परेशान होने की आवश्यकता नहीं !सारा माल कल ही मेरी दुकान पर भिजवा दो जो तेरी कोस्ट आई है हमसे ले लेना ,,,,परंतु पेमेंट 6 महीने बाद में दूंगा ।
दिवाकर --मुझे क्या लाभ होगा?
रमेश --अरे तेरा गोदाम खाली नहीं हो जाएगा, एक दिन कबाड़ी को बुलाकर उठवाएगा उससे तो अच्छा है । दिवाकर --रमेश जी एक बात बताओ भविष्य में इस व्यवसाय की स्थिति क्या रहेगी ? रमेश --हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे !सरकार कहां चाहती है पुस्तके छपे ,पुस्तकालय खुले ,,,सब कुछ ई बुक्स पर पढ़ना -पढ़ाना चल पड़ा है । दिवाकर --यह बात तो सत्य है रमेश जी लेकिन अब  ओखल में सिर दे दिया है तो कोई रास्ता समझाओ। रमेश --रास्ता बहुत आसान है भैया फेसबुक पर अपने प्रकाशन की योजना बताओ  ,मक्खी की तरह लेखक भिन्न-भिन्नाते हुए आने लगेंगे ।पुस्तक के हिसाब से लेखक से खर्चा मांग लो ,कम से कम आधा
एडवांस ।कुछ पुस्तकें अपने पास  रख लो ,सरकार की खरीद-फरोख्त निकलती रहती है कुछ कमीशन सरकार लेती है बाकी अधिकारी के मुंह पर मारो ।शेष जितना बचा सकते हो उसे अपनी जेब में डालो।  दिवाकर --भाई साहब ,ये सब बातें मुझे कुछ हजम नहीं हो रही । रमेश --भैया कहीं तुम लेखक -वेखक तो नहीं रहे? दिवाकर --सब कुछ आपको बताया तो है ,अपनी दो पुस्तकें प्रकाशित करने के लिए तो मैं प्रकाशक बना ! रमेश --सब समझ गए, अब आपको साहित्य का तोड़ समझा देता हूं यदि साहित्यकार कहलाना है तो इस प्रकाशन को ताला लगा दो और प्रकाशक बनना है तो ये भावनाएं ,संवेदनाएं बंद करके घौर व्यापारी बन जाओ । दिवाकर --और मेरा लाखों रुपया,,,,,,।
   रमेश -- चिंता मत करो अपने प्रकाशन को हमारी सिस्टर कंसर्न बना दो !आपका शौक पूरा होता रहेगा और हमारा धंधा !
कटु सत्य होते हुए भी दिवाकर बेहद असहज हो गया ।चाय पकोड़े लगभग समाप्त होने को थे ।वह तेजी से उठा!-- रमेश जी आप चाय समाप्त करें मैं फ्रेश होकर आता हूं !
रमेश जी पकौड़ो का आनंद ले रहे थे और दिवाकर बाथरूम की ओर न जाकर तेजी से मेट्रो पकड़ने के लिए निकल पड़ा !
-०-
पता:
मधुकांत
रोहतक (हरियाणा)
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