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Thursday, 27 August 2020

भारत छोडो (कविता) - राम गोपाल राही


भारत छोडो
(कविता)
(9 अगस्त 1942)
काँग्रेस का नेतृत्व पाकर
राष्ट्र चेतना आयी थी |
अँग्रेजों का दम फूला था ,
देश ने ली अँगड़ाई थी ||

भारत छोड़ो आंदोलन का ,
कुछ ऐसा आगाज हुआ |
काँग्रेस महा अधिवेशन में ,
था प्रस्ताव पास हुआ ||

नौ अगस्त सन बियाँलीस को ,
देश में हलचल भारी थी |
गाँधी जी के नेतृत्व में ,
बोली जनता सारी थी ||

अँग्रेजों तुम भारत छोड़ो ,
हिन्दुस्तान हमारा है |
सोने की चिड़िया देश को ,
लूटा तुमने सारा है ||

तुम्हें भगा कर ही दम लेंगे ,
यह संकल्प हमारा है |
बाँधा  हमने कफन समझ लो ,
 यहाँ न हक  तुम्हारा है ||

व्यापारी बन बैठे शासक ,
कि तुमने गद्दारी है |
अपने देश में अपना शासन ,
हक की माँग हमारी है ||

उल्टी गिनती शुरू हो गई ,
अब तुम्हारे जाने की |
अधिपत्य  व राज छोड़कर ,
राज हमें संभलाने की ||

हाथ मशालें लेकर निकले ,
काँग्रेस जन सारे थे |
भारत छोड़ो आंदोलन में ,
राष्ट्र  एकता नारे थे ||

हाथ तिरंगा झंडा गीत ,
सभी बोलते जाते थे |
भारत माँ के जयकारों संग ,
आगे कदम बढ़ाते थे ||

अंग्रेजों ने दमन चक्र का
बिछा चहुँ  ही जाल दिया |
चौदह हजार  भारतीयों को
चहुँ जेल में डाल दिया ||

उग्र हो गया आंदोलन था ,
फैला विकट नजारा था |
बुलंद हौसले हाथकड़ी ,
जज्बा जोश नजारा था ||

नींद उड़ा दी अँग्रेजों की ,
आंदोलन ने हिला दिया |
भारत छोड़ो आंदोलन ने,
ऐतिहासिक काम किया ||

बलिदानों व संघर्षों  में -
 तन मन खूब लुटाया था |
कांग्रेस के सिवा अन्य दल ,
कोई साथ न  आया था ||
-०-
पता
रामगोपाल राही
बूंदी (राजस्थान)
-०-



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