(ग़ज़ल)
किस्तों में खोता रहा
जिंदगी ढोता रहा
क़त्ल हुए अरमां
रूह भी रोता रहा
मर गई जमीं औ'
फसल बोता रहा
जल रहा आंगन
घर भी सोता रहा
रोशनी जाती रही
ख्वाब संजोता रहा
खुदी मार गंगा को
गुनाह धोता रहा
धोखे पे धोखा मिला
जुस्तजू होता रहा
-०-
पता:
प्रशान्त 'प्रभंजन'
बाह! खुबसूरत गजल के लिये हार्दिक बधाई है आदरणीय !
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