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Saturday, 29 August 2020

तू मेरी मैं तेरी थी (कविता) - रोशन कुमार झा

तू मेरी मैं तेरी थी
(कविता)
मैं रोशन यह ज़िन्दगी तेरी थी ,
तब ही अपना मानती थी , जब तू अकेली थी !
तू तो लुटी ही और तुम्हारी लुटने वाली सहेली थी ,
आज किसी और की हो गई यह तुम्हारी नहीं मेरी
क़िस्मत की फेरी थी !!

तब ही पूजा करने योग्य फूल तू चम्पा और चमेली थी ,
जब तू मेरी थी !
तुम्हारी जिन्दगी में किसी के आने की देरी थी ,
बदल गई तू , ऐसा कौन सा पहेली थी !!

तू मेरी मैं तेरी थी ,
कैसे भूलें वह दिन , जब तू मेरे साथ खेली थी !
सुन्दर रूप, सुन्दर चाल चलने वाली तुम्हारी एड़ी थी ,
छोड़कर चली गई, क्या इतने ही दिन की सफ़र मेरी थी !!

मेरी डांट फटकार सब झेली थी ,
कब ? जब तू अकेली थी !
छोड़कर जाना रहा ,यह सोच तेरी थी ,
तुम खुश हो न , फुटा क़िस्मत तो मेरी थी !!
-०-
रोशन कुमार झा
कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

-०-



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1 comment:

  1. हार्दिक बधाई है सुन्दर रचना के लिये।

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