विनय सुनो मेरी
(कविता)
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा ।।
आया हूँ अब शरण तुम्हारी ,काटो सकल कलेश हमारा ।।
शिव गौरी के राज दुलारे ,दीन दुखी के रखवारे ।
रिद्धि सिद्धि के दाता प्रभु जी ,जग पालक,पालन हारे ।
हृदय लुभाती भोली सूरत ,अनुपम है परिवेश तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।
सब देवों में प्रथम पूज्य हो ,मंगल करते मंगलकारी ।
अति प्रिय भोग तुम्हें मोदक का ,मूषक राजा बने सवारी ।
सकल भुवन है चरण ;शरण में ,जब जब हो आदेश तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।
थाल सजा हम करें आरती ,द्वार दया का प्रभु अब खोलो ।
लम्बोदर,गणपति,गणनायक,सारे मिलकर जय हो बोलो ।
दशों दिशा दिगपाल जहाँ में , है सत्कार विशेष तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।
आया हूँ अब शरण तुम्हारी ,काटो सकल कलेश हमारा ।।
शिव गौरी के राज दुलारे ,दीन दुखी के रखवारे ।
रिद्धि सिद्धि के दाता प्रभु जी ,जग पालक,पालन हारे ।
हृदय लुभाती भोली सूरत ,अनुपम है परिवेश तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।
सब देवों में प्रथम पूज्य हो ,मंगल करते मंगलकारी ।
अति प्रिय भोग तुम्हें मोदक का ,मूषक राजा बने सवारी ।
सकल भुवन है चरण ;शरण में ,जब जब हो आदेश तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।
थाल सजा हम करें आरती ,द्वार दया का प्रभु अब खोलो ।
लम्बोदर,गणपति,गणनायक,सारे मिलकर जय हो बोलो ।
दशों दिशा दिगपाल जहाँ में , है सत्कार विशेष तुम्हारा ।।
हे! दुख हरता हे!सुख करता ,विनय सुनों मैं दास तुम्हारा।।
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