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Sunday, 2 August 2020

आग (कविता) - डॉ. स्मिता मिस्र

आग
(कविता) 
आग 
लगी दिल्ली 
धूँ धूँ जलती 
मचा हुआ 
उत्पात । 

स्वार्थ 
बढ़ रहा 
आत्मीयता दिखा दिखा 
वसूल रहे 
मूल्य ।

पत्थर 
मार कर 
आग लगा कर 
जलाते देश 
आज 

कहाँ 
बह गया 
ज्ञान का सागर 
मिटा रहे 
शान्ति । 

कर 
दोहन हमारा 
हतियाना चाह रहे 
देश दुबारा 
हमारा । 

कभी 
नहीं होंगे 
इनके मंसूबे पूरे 
खामोशी टूटेगी 
हमारी ।

हमारे 
व्यवहार  को 
निस्वार्थता प्यार को 
ठुकरा कर 
आज 

फैलाते 
नफ़रत तुम 
दहशत मचा मचा 
डरा रहे 
हमें ।

दिया 
हिस्सा तुम्हारा 
अब क्यूँ  जलाते 
देश तुम 
हमारा । 

जाओ 
जाकर रहो 
तथाकथित अपने देश 
दहशतगर्दो आतंकियों 
बीच 

भाता 
नहीं जिन्हें 
अमन चैन यहाँ 
जाकर बसो 
वहीं ।
-०-
पता:
डॉ. स्मिता मिस्र 
-

-०-



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