(कविता)
आठों पहर खड़ा अरण्य में,
शीत गर्मी वर्षा सब सहता है।
धीरजवान उस वृक्ष को देखो,
किसी से कुछ नही कहता है ।
फल,फूल और छाया देता सदा,
प्राण वायु का करता संचार है।
संजीवन रूपी वह वृक्ष निराला,
जो मानुष जीवन का आधार है ।
बादल भी पाकर नमी वृक्षों से,
रिमझिम पानी बरसा जाता है।
वरदानी वृक्ष बनकर किसानों के,
मुस्कान होठों पर ले आता है ।
थके पथिक को राहत देता,
पक्षियों का वह घर बसेरा है।
उछल-कूद करते बच्चों का,
बाल लीलाओं का एक घेरा है ।
कभी नीम नारायण बनकर
रूप भगवान का धरता है ।
कभी धरकर रूप तुलसी का
घर आँगन पावन कर जाता है ।।
-०-
शीत गर्मी वर्षा सब सहता है।
धीरजवान उस वृक्ष को देखो,
किसी से कुछ नही कहता है ।
फल,फूल और छाया देता सदा,
प्राण वायु का करता संचार है।
संजीवन रूपी वह वृक्ष निराला,
जो मानुष जीवन का आधार है ।
बादल भी पाकर नमी वृक्षों से,
रिमझिम पानी बरसा जाता है।
वरदानी वृक्ष बनकर किसानों के,
मुस्कान होठों पर ले आता है ।
थके पथिक को राहत देता,
पक्षियों का वह घर बसेरा है।
उछल-कूद करते बच्चों का,
बाल लीलाओं का एक घेरा है ।
कभी नीम नारायण बनकर
रूप भगवान का धरता है ।
कभी धरकर रूप तुलसी का
घर आँगन पावन कर जाता है ।।
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