(कविता)
मां तुम तो
प्रथम गुरु हो मेरी
जीवन के सारे सबक
सीखे तुम्हीं से
तभी तो आज
कलम चली है मेरी
जब भी कभी
मन घबराता है मेरा
कर लेती हूं आंखें बंद
जहन उभरता है अक्स तेरा
याद आने लगता है
वो सलीके से
काम करना तेरा
जीती थी तुम
जिंदगी को
कितनी तरतीब से
कितना अटपटा सा
लगता था मुझे
पर आज वही तरतीबी
मैंने भी तो अपना ली है
मैंने भी धीरे धीरे
अपना ही लिया है
तेरा वो ही ढब
वरना मैं तो
हो चली थी बेढब
अब हो गई हूं
अकेली तन्हा
जैसे कोई भी
अपना न रहा
तब सपने में आती हो
मुझे समझाती हो
उस पल मैं
तुम्हें अपने साथ पाती हूँ
मीठे मीठे अहसासों से
अपने को लबरेज पाती हूँ
-०-
पता:प्रथम गुरु हो मेरी
जीवन के सारे सबक
सीखे तुम्हीं से
तभी तो आज
कलम चली है मेरी
जब भी कभी
मन घबराता है मेरा
कर लेती हूं आंखें बंद
जहन उभरता है अक्स तेरा
याद आने लगता है
वो सलीके से
काम करना तेरा
जीती थी तुम
जिंदगी को
कितनी तरतीब से
कितना अटपटा सा
लगता था मुझे
पर आज वही तरतीबी
मैंने भी तो अपना ली है
मैंने भी धीरे धीरे
अपना ही लिया है
तेरा वो ही ढब
वरना मैं तो
हो चली थी बेढब
अब हो गई हूं
अकेली तन्हा
जैसे कोई भी
अपना न रहा
तब सपने में आती हो
मुझे समझाती हो
उस पल मैं
तुम्हें अपने साथ पाती हूँ
मीठे मीठे अहसासों से
अपने को लबरेज पाती हूँ
-०-
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