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Tuesday, 25 August 2020

मन का वृंदावन (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

मन का वृंदावन
(कविता)
तन की बसी अयोध्या में है,
मन का वृंदावन |

सागर की नीलामी करता,
रोज समय का सूर्य,
सदा सूचना देता भू को,
बज कलरव का तूर्य,
सावन की हर धूप-छाँह का,
घन का वृंदावन |

आसमान की ऊँचाई का,
मिला नहीं परिणाम,
जेठ दुपहरी में पर्वत को,
भून रहा है घाम,
तड़पा खुशियों की मथुरा में,
जन का वृंदावन |

पौराणिक आख्यान, कथाएँ,
लोकव्यथा का गान,
भक्ति-भाव का रूप चिरंतन,
समता का सम्मान,
कृष्ण-राधिका की यह माटी,
वन का वृंदावन |

सत्संगों की समिधाओं का,
एक हवन का कुंड,
योग साधना का पद्मासन,
जनमानस का झुंड,
आस्थाओं की पूजाओं का,
अन का वृंदावन |
-०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


***
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