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Friday, 4 September 2020

देखो मुझको (कविता) - राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'


देखो मुझको 
(कविता)
देखो मुझको मेरे जी को,
मैं एक आवारा राहगीर,
न मिटने वाली मैं लकीर,
अपनी मर्जी का मैं फकीर..!!
छोड़ो मुझको तुम रहने दो,
नदियों झरनों सा बहने दो ,
जो मन में है वह कहने दो,
है नहीं बड़ा मुझको बनना,
मुझको फकीर ही रहने दो,
कुछ कड़ियों को सुलझाने में,
उलझा हूं उलझा रहने दो,
किंचित अब सुख की चाह नहीं,
जग का विषाद तुम सहने दो..!!
दुनिया के भीषण विप्लव में,
मैं तिनको सा बह जाऊंगा,
मत राह देखना तुम मेरी,
मैं लौट के अब ना आऊंगा..!!
मैं अपने पथ पर चलने को,
तत्पर हूं मुझे विदाई दो,
कुछ मैं नवीन कर दिखलाऊँ,
इस खातिर मुझे बधाई दो,
मैं चला चला चलते-चलते,
सबको अभिवादन है मेरा,
ये कर्ज चुका न पाऊंगा,
हे धरती माता! मैं तेरा..!!
-०-
पता- 
राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
हमीरपुर (उत्तर प्रदेश)

-०-

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