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Friday, 4 September 2020

कालकूट (कविता) - राजीव डोगरा 'विमल'


कालकूट
(कविता)
ओड़कर सनातन तन को
कहाँ तक जाओगे,
मिट जाए सब भ्रम तो
एक दिन तुमको भी पा जाएंगे।
रहा अगर जात-पात का
यह भ्रम मन में तो
जिंदा ही अपने बुरे कर्मों से
जल जाओगे।
और अपनी बुरी करतूतों को
कभी न मिट्टी में
दफन कर पाओगे।
सोच लो समझ लो
करना क्या है
आखिर तुम को।
असत्य के साथ जीना है या
सत्य के साथ मरना है।
मगर तुमको अब भी
कुछ नहीं पता तो
तुम कालकूट के विषभरे
सर्प के दांतो में
ऐसे फंसे रह जाओगे।
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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