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Wednesday 14 October 2020

राम यही है (कविता) - अ कीर्तिवर्धन

राम यही है
(कविता)
राम यहीं हैं खुद के भीतर, देखो खुद पहचान कर,
रावण भी तो रहते संग संग, पहचानो पहचान कर।
क्यों करते हो प्रतीक्षा तुम, देवलोक से कोई आये,
पहले खत्म करो निज भीतर, रावण को पहचान कर।
कोई करता पाप कर्म, रावण ही तो कहलाता,
बेईमान और भ्रष्टाचारी, मेघनाथ सम बन जाता।
बलात्कर करने वालों के, जो हमदर्द बने बैठे,
मारीच और सुबाहु, कुम्भकरण बन इठलाता।
-०-
पता: 
अ कीर्तिवर्धन



***
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