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Wednesday, 14 October 2020

अंधेरे शहर में (ग़ज़ल) - नदीम हसन चमन

अंधेरे शहर में
(ग़ज़ल) 
अंधेरे शहर में रौशनी की दुकान है
ग़म की किताब में ख़ुशी दास्तान है

फरिश्तों को शिकायत नहीं ख़ुदा से
किस क़दर दुनिया में गुम इंसान है

ज़मीन की प्यास का करे अंदाज़ा वो
जिसके हाथों में सबका आसमान है

किस तरह क़रीब आये तुम्हारे दिल
कुछ नहीं मेरे पास इक मेरी जान है

हवेली महल हीरे जवाहरात कल भी थे
मगर बाक़ी रही किसकी पहचान है

नहीं मयस्सर पानी हर आदमी को
बस बिक रहा सस्ता  यहाँ ईमान है

घर तो काग़ज़ पर नज़र आता है
जिधर देखता हूँ उधर मकान है

वफ़ा दिल में लब पे सदाक़त आज भी
शख़्स ऐसा नदीम बहुत नादान है
-०-
पता
नदीम हसन चमन
गया (बिहार) 
-०-


***
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